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तरक्की / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
आपां
कित्ती करली तरक्की
आखौ जग
आपणी जेब मांय

बरसां सूं बणायोड़ौ
स्सौ' कीं
आपां
अेक बटण सूं
कर सकां तैस - नैस

आओ
आपां कीं और
तरक्की करां

स्सौ' कीं
तैस-नैस करण सारू
बटण ई
नीं दबाणौ पड़ै
कोई अेड़ौ काम करां।
</poem>
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