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सुख-दुख : दोय / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
आपां
हरमेस ई
सुखी रैह्स्यां
आ'
कियां हुय सकै

दुख नीं हुयसी
तद
खतम हुज्यासी
सुख रौ मोल

इण सारू
दुख जरूरी है
दुख पछै ई
आयसी
सुख अणमोलौ।
</poem>
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