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आग / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
पैली
आग चूल्हां में
दपट'र
राखता लोग।

जरूत माथै
अेक-दूजै सूं
मांग'र काम चलांवता
पछै जगांवता
चूल्हो, हारो अर तन्दूर

अबै
आग दपटण री
दरकार कोनी
सगळां रै
भीतर भर्यौड़ी है आग।
</poem>
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