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पोथ्यां : तीन / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
म्हूं
पोथ्यां नीं पढी
ठोकरां खाई है
आखै जग में
जिग्यां-जिग्यां

आखौ जग
लायब्रेरी है
अर
सगळा मिनख
है पोथ्यां

म्हूं आ'नै पढूं
अर आगै बढूं।
</poem>
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