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पीसा / दुष्यन्त जोशी

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<poem>
थूं
भींता माथै
लीकलकोळिया कर'र
क्यूं बिगाड़ै
घर रौ रूप

मोबाइल रै
ईयर फोन सूं
थूं
गाणां सुणतौ-सुणतौ
काईं गुणगुणावै

बिना मतलब री
बातां कर'र
थूं
कांईं सीखणौ चावै

थूं
आपरै काम सूं काम
राख्या कर
इस्कूल री पोथ्यां पढ्या कर
होमवर्क पूरौ करया कर

तन्नै कीं सूं ई
कीं नीं लेणौ-देणौ
बड्डौ हुयर
पीसा कमावणा है
थूं मान ले
म्हारौ कैणौ।

</poem>
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