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मां: 5 / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
म्हनै बुलाय
धीजौ ई तौ
सूंपणी चावती ही
थूं।

थनै अर
थारी
कूख नै

जतळायां
के
फगत
कस्टीज्यां ई
हरी नहीं व्हे जावै
मां री कूख।

दागल ई व्हे जावै
जद
जाया बिसरावै
पूत जिणियां ई
निपूती बाजै।
पण औ कांईं
म्हनै सांम्ही देख
ऊंडै हेज
थूं आपरौ आपौ
पांतरगी
मां !

तद इज तौ म्हैं
किणी मरसिया रै बणण सूं पैली
थनै रच लेवणी चावूं
मां
के
कदैई
औरूं नीं दागीजै
कोई कूख।
</poem>
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