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कुदरत: 2 / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
थारै जागयां समचै ई जागै
देह, चित्त अर मन
जिण में थड़ियां करतोड़ौ
म्हैं
थारौ, भूत, वरतमांन अर
भविस!

थारी ई कूख जलमै
तनमातरावां
वां सूं
पंच महाभूत।

आंरै अंगेज्यां
गुण
ऊठै अगन झाळ
सरसै प्रिथमी
पसरै सबद
पीवतां रस
करतां परस
गंध बण बिखरै
रूप-रूप निखरै
थूं !
</poem>
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