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धरती: 2 / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
थनै सेड़ा में
बांट-बूट
सेवट
ऊमरां-ऊमरां
बंटग्या
म्हे।

पण
थारै हेत रौ
कठै ई
सेड़ौ
कोयनीं !

औ क्यूं
मां ?
</poem>
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