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न्याव / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
गूंगो-बोळौ
आंधौ बण
बदळग्यौ
थूं !

ठावौ
थारौ
मुलकां चावौ
नांव
न्याव !

अटकण लागियौ
थूं,
थारै ई दरूजां
जांणै
रिंधरोही में
भंवतौ मिरगलौ
किस्तूरी री
दौड़।
</poem>
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