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सिरायत / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
पेट री लाय नै
बुझावण
दिन-रात
परसेवौ काढां
म्हे !

बैवती गंगा में
मछरां करौ
थे !
</poem>
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