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परम उजास / मीठेश निर्मोही

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|संग्रह=आपै रै ओळै-दोळै / मीठेश निर्मोही
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<poem>
थे म्हनै सूंपणी चावौ
उजास ?
अर म्हैं आपरै आपांण
खमखरी खाय
बधणी चावूं धकै ई धकै
अैड़ा अथाग
अंधारा री सोय
जिकौ किणी
सूरज री झळ सूं
नीं विणसै!
</poem>
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