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प्रेम- दोय / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम / ॠतुप्रिया
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<poem>
म्हूं पढूं
तद थूं दीखै
पोथी रै पानै-पानै
अर
आखर-आखर में
थारौ मुळकतौ चैरौ

अकास कानी देखूं
तद थूं दीखै
जमीन कानी देखूं
तद थूं दीखै
पाणी में झांकूं
तद थूं दीखै

सोऊं
तद थूं आवै सपनां में
जागूं
तद थारी सूरत रौ
हुवै दरसाव

जठै देखूं
बठै थूं ई थूं
स्यात इणी नै कैवै प्रेम।
</poem>
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