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बिरखा / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम / ॠतुप्रिया
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<poem>
अे बिरखा
थूं जद आवै
तद प्रकृति रौ
रोम-रोम खिल ज्यावै

उण टैम
माटी री सौरम
कित्ती मन भावै

ईंरै सामै
सगळा सैंट अर डीओ
फेल हुज्यावै।
</poem>
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