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बकरी / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम / ॠतुप्रिया
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<poem>
बेटी रै सासरै स्यूं
दाज बाबत
आंवतां औळमां स्यूं
आखता हुय’र
बापू जी बोल्या-
छोरी
तेरै सासरैआळा
दाज रा ताना देय’र
रीस क्यूं दिरावै
सगळौ कोठो
भुवार’र लेयग्या
अबै कांईं चावै
म्हे कांईं
बांरी बकरी खोल ली

बकरी खोली कोनी
बकरी बाँध दी
बेटी भर्योड़ै गळै स्यूं बोली।
</poem>
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