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जीव / ॠतुप्रिया

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|संग्रह=ठा’ नीं कद हुज्यावै प्रेम / ॠतुप्रिया
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<poem>
मुसाणां में
दाग रै टैम
परम्परा मुजब
हेलौ मारै

बापूजी
तगड़ा हुज्याइयौ
आग आवै

इण उम्मीदां में
कै स्यात
आग रै डर स्यूं
बोल सकै

जे भीतर हुयसी
जीव।
</poem>
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