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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
रक्षक स्वयं हो चोर तो लोहा उठाइए।
सूरज करे न भोर तो लोहा उठाइए।

साहब की आय ठीक हो भत्ते भी ठीक हों,
फिर भी हों घूसखोर तो लोहा उठाइए।

देने में ढील कोई बुराई नहीं मगर,
काटे जो हाथ डोर तो लोहा उठाइए।

जिनको चुना है आपने उन्नति के वासिते,
करते हों सिर्फ़ शोर तो लोहा उठाइए।

हड़ताल, शांतिपूर्ण प्रदर्शन, जुलूस तक,
कोई चले न ज़ोर तो लोहा उठाइए।
</poem>
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