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|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
अगर चंदन के तरु पर घोसला रखना।
तो जड़ के पास भूरा नेवला रखना।

न जिससे प्रेम हो तुमको, सदा उससे,
ज़रा सा ही सही पर फासला रखना।

बचा लाया वतन को रंगभेदों से,
ख़ुदा अपना हमेशा साँवला रखना।

नचाना विश्व हो गर ताल पर इनकी,
विचारों को हमेशा खोखला रखना।

अगर पर्वत पे चढ़ना चाहते हो तुम,
सदा पर्वत से ऊँचा हौसला रखना।
</poem>
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