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{{KKRachna
|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
}}
{{KKCatGhazal}}
<poem>
एल ई डी की क़तारें सामने हैं।
बचे बस चंद मिट्टी के दिये हैं।
दुआ सब ने चराग़ों के लिए की,
फले क्यूँ रोशनी के झुनझुने हैं।
रखो श्रद्धा न देखो कुछ न पूछो,
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं।
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा,
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं।
उजाला शुद्ध हो तो श्वेत होगा,
वगरना रंग हम पहचानते हैं।
करेंगे एक दिन वो भी उजाला,
अभी केवल धुआँ जो दे रहे हैं।
न अब तमशूल श्री को चुभ सकेगा,
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।
</poem>
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|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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एल ई डी की क़तारें सामने हैं।
बचे बस चंद मिट्टी के दिये हैं।
दुआ सब ने चराग़ों के लिए की,
फले क्यूँ रोशनी के झुनझुने हैं।
रखो श्रद्धा न देखो कुछ न पूछो,
अँधेरे के ये सारे पैंतरे हैं।
अँधेरा दूर होगा तब दिखेगा,
सभी बदनाम सच इसमें छुपे हैं।
उजाला शुद्ध हो तो श्वेत होगा,
वगरना रंग हम पहचानते हैं।
करेंगे एक दिन वो भी उजाला,
अभी केवल धुआँ जो दे रहे हैं।
न अब तमशूल श्री को चुभ सकेगा,
उजाले के दरीचे खुल रहे हैं।
</poem>