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|रचनाकार='सज्जन' धर्मेन्द्र
|संग्रह=पूँजी और सत्ता के ख़िलाफ़ / 'सज्जन' धर्मेन्द्र
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<poem>
जल्दी में क्या सीखोगे।
सब आहिस्ता सीखोगे।

इक पहलू ही गर देखा,
तुम बस आधा सीखोगे।

सबसे हार रहे हो तुम,
सबसे ज़्यादा सीखोगे।

सबसे ऊँचा, होता है,
सबसे ठंडा, सीखोगे।

सीखोगे जो ख़ुद से तुम,
सबसे अच्छा सीखोगे।

पहले प्यार का पहला ख़त,
पुर्ज़ा पुर्ज़ा सीखोगे।

ख़ुद को पढ़ लोगे जिस दिन,
सारी दुनिया सीखोगे।
</poem>
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