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मन बेताळ / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
मन बेताल
चढ्यो चेतना रै कांधे माथै
पूछै अनगढ अतरंगी सवाल
हे कलम रा विक्रम
देवो पडूत्तर
कै अै ठंठ्योड़ी हाडक्यां
खेतां मांय कांई बोवै
आ जापायत लुगाई
राजमारग री माटी क्यूं ढोवै
किलकारियां आंगणै री ठौड़
अकूरड़ी कुण पुगावै
स्हैर री सडक़ां माथै
लोही कुण बहावै
बूढो बरगद क्यूं उदास है
अर आं पीळी आंख्यां में किण री आस है?
आजादी री इमरत बरखा
हवेल्यां में क्यूं बरसी
अणविस्वास री राख
संबंधां पर कुण मसळी
बोल विक्रम, बता विक्रम
कै फौलाद सूं जद बण सकती ही हळ री फाळ
तो दुनाळियां कुण घड़ी?
मानखै नैं मानखै सूं डरण री जरूरत क्यूं पड़ी
कारतूस रै खोळ रा दागीना क्यूं नी बणाओ
टैंक सूं टाबरियां नैं स्कूल क्यूं नीं पूगावो?
कुण पालै थांनै सींव मिटातां
कुण रोकै थांनै प्रेम निभातां
बोल विक्रम, बता विक्रम, सोच विक्रम
कीं तो कर विक्रम!
नीं तो खिर जासी रिस्तां री मिठास
हो जासी मिनखाचारो किरच-किरच
बोल विकरम, बता विकरम
मन बेताळ चढ्यो चेतना रै कांधै
पूछै सवाल।
</poem>
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