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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
थे रचो
आखरां रा भाखर
चितारो मन री रूमानियत
कविता रै संचे
उगेरो
प्रेम-गीत
बायरै रै पंखै सागै
समदर री हिलोळां लिखो
अणगिण पोथियां
बणाओ
नूंवा सिलोक नीति रा
मिनखपणै री जूण-जातरा रै चितरामां भरो
नेह रा इन्द्रधनखी रंग
पण म्हैं माटी रो मोट्यार
लिखूं खेत री पाटी माथै
हूंस रै बरतै सूं
जरूरत री ओळ्यां
बाजरी रै सिट्टां में रचीजै
भूख-रिचावां
खळो काढतां बण जावै
पसेवै री गजल
मत्तै ई
तिरपत आत्मावां चितारै
प्रीत रो महाकाव्य
म्हैं
नीं अंवेर कै रच सकूं
प्रेम री पोथ्यां
दुनियावी उणियारै!
</poem>
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