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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
आ गाय, ओ सूरड़ो
आ घोन, बो ऊंठ
अै कुत्ता, सियाळिया, गिरजड़ा सगळा
आप-आपरो करम करै
आपरो धरम निभावै
कदैई नीं कतल करै कोई गाय
ऊंट नैं...
कदैई नीं मारै घोड़ो
बेकसूर कुत्तै नैं...
क्यूंकै आं रो कोई संप्रदाय, मजहब
कोई संविधान कोनी...
अर ना है किणी भांत रो आरक्षण...
अै लड़ै कोनी
क्यूंकै चुणाव में आंनै
बोटां री रोटी लासां पेटे सैकण री दरकार नीं हुवै
जद ईज तो लाई आज तलक जिनावर है...
म्हैं तो मिनख हां
अकलमंद?
</poem>
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