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राज जस / मोनिका गौड़

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<poem>
आया है फेरूं
लसकरिया राज
कड़पदार गाभां में
सजधजिया राज
उतर्या चमकती
ए.सी. कार सूं
लुळता खुद रै सरीर रै भार सूं
गंदगळी री छेकड़ली झूंपड़ी रा
जाग्या-जाग्या भाग ओ राज
अळसाया गिंडक
लिक-लिक करता
सूरड़ा भाज्या ओ राज
आज राज जीमसी रोटी
हाजरिया गासी—
राज जस ओ राज
अरे हां सा म्हारा धोळपोसिया
दलितां री मांची बैठ्या ओ राज
गरीब घरां में जीमै राज
अब बदळसी बांरा भाग
राज पीवै ऑटोक्लेव कर्यै लोटे में
बोतल-बंद पाणी
मीडिया में चालै
प्रायोजित कहाणी
मूंडै फंस्योड़ा माइक भूंसै
विगसाव री भौं-भौं
भींत चिप्योड़ा टींगर
मिचमिची आंख्यां सूं
देखै औ सांगो
पळपळाता कैमरा मंगसा
राज रै मूंडै री मुळक आगै
राज बातां रै गमछै सूं ढक देसी
भूख रो सूरज
फूंक सूं बुझा देसी
पेट बळती लाय
घालसी किरणां रा तागा
फाट्योड़ी गूदड़ी में
लट्टू री ठौड़
चसा देसी चांद-तारा
लगावैला टेभ
उधड़्योड़ै भाग में
हाथ जोड़’र लसकरिया हुया व्हीर
लारै छोड
जूतां साथै आयो
कूड़ै वादां रो गंद
अेंठवाड़ै सूं भर्योड़ा
सुपनां रा टिश्यू
झूंपड़ी गतागम में
राज आयां बदळ्यो भाग
कै बधग्यो
फाट्योड़ै खूंजै रो करजो
गाड्यां री धूड़ ढक दी
झूंपड़्यां री आस।
</poem>
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