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कंसळावां री कदर / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
थे कंसळावां रो
लेवो हो सीर
देवो बांनै मान
नांव,
मंच
समझां हां म्हे
सो-कीं—
कंसळा लुळ सकै
घसड़ीज सकै
पण सीधा ऊभा नीं हुय सकै,
इणीज कारण थे करो
कंसळावां री मान-मनवार
बै गावै थांरा गीत
लुळ जावै थारै साम्हीं,
नीं देवै होठां पड़ूत्तर
कंसळा कायम राखै
थारै नांव रो भरम
थारै आगै
खूणीसुदा सलामां री भूख
कंसळा घणा जीवै ई कोनी।
</poem>
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