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सागी सियाळिया / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
रूळ रह्यो है पगां में
आवता-जावता ठोकर सूं गुड़ाय देवै
आपरी मरजी मुजब
आप-आपरै वाजिब कारणां साथै
कदैई कोई पाटी-पोळी कर देवै
पावै दो घूंट पाणी रा
इत्तै में ई गोधम घालता गोधा
फेरूं रडफ़ड़ा देवै पाछो उणनैं
लीरा-लीर गाभां में लाज बचावण सारू
भटक रैयो है दरूजै-दरूजै
पण बार-बार हर दरवाजै सूं
गाभा बदळ्यां साम्हीं आवै
सागी सियाळिया
बावड़ै पाछो किरच-किरच होय’र
आस रै साथै भूंवीज रैयो है
साल-दर-साल, पांच साल, सित्तर साल
बापड़ो लोकतंत्र।
</poem>
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