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सास्वत समरपण / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
सईकां पैला थे ईज नांव दियो
म्हारै अस्तित्व नैं
म्हैं उणरै प्रेम रै केंद्र सूं बंध्योड़ो
लगा रैयो हो चक्कर
उण री परिधि में
बिना मरजाद नैं उळांघ्यां
फगत आकर्षण री अणदेखी रेख सूं
जुड़्योड़ो अनांव
अणचीन्हो
थे ईज करवायो गीरबो
खुद रै होवण रो
म्हैं नीं छोडणो चावतो उणनैं
कमी भी नीं आई
चीनी’क-सी म्हारै नेह में,
अब सईकां बाद चाणचक
थे कर दी घोसणा
म्हैं, ‘म्हैं’ नीं हूं
सोलर सिस्टम रो हिस्सो
रुंगसी खाय’र काढ दियो
थे म्हनैं
म्हारै ईज परिवार सूं
बताओ मिनख
कुण हो थे?
भाग्य विधाता?
करणधार?
क्यूं आसमान री मंदाकनियां
धूमकेतु
तारामंडळ
थारै नांवकरण रो मूंडो जोवै
जद कै थासूं पैलां है म्हारो आपो
नवग्रह सूं काढ्यां पछै
किण री करोला पूजा
जम री ठौड़,
किण भांत करोला नवग्रह री थरपना
अर उणरै शांतिपाठ रौ धंधो
थांरो विग्यान घोसित कर सकै
म्हनैं हासियै रो अेक्स्ट्रा खेलाड़ी
पण थांरी आस्था,
विस्वास,
अर कर्मकांडां रै केंद्र में
हरमेस रैसी म्हारो वजूद
जावो!
म्हैं सूर्यप्रेमी प्लूटो
नकारूं थांरै विग्यान नैं
थे फगत तोड़ण रो ईज काम करता आया हो
सभ्यता रै विगसाव सूं लेय’र आज तांई
म्हैं मौन गवाह हूं
थांरै सगळै प्रेम-भंजन रै कारनामां रो
कित्ती ई आफळ करलो, पण
म्हारो आकर्षण
म्हारो प्रेम
म्हारो समरपण सास्वत है
सूर्य सारू
सईकां सूं सईकां तांई
प्लूटो नैं विलग नीं कर सको...
प्लूटो नैं विलग नीं कर सकोला...
</poem>
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