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बोल कान्हा! / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
थारी दुनिया री अळूझाटां री किणी कोर
रैवती हुवैली कठैई राधा ई स्यात
बोल कान्हा!
मथुरा रै महलां ई दिखूं कै
कदै-कठैई पल-छिण
थारी यादां री सळवटां नैं
कदैई
सीधी करै कांई म्हारी ओळूं री उस्तरी?
कान्हा सूं क्रिस्ण री इण भाव-जातरा
कठैई उतार आयो थारी राधा रो प्रीत-भारियो
कै काळजै रै गाडूलियै लियायो
आपणी हथाई रा बै बेसकीमती मोती
बोल क्रिस्ण!
म्हनैं तो मिल जावै है थूं
जमना किनारै
कै किणी सरवर री पाळ
ग्वाळियां री बंसरी री मधरी तान में
कै किणी बिलोवणै मथीजतै दही रै सुरीलै सुरां
अर गायां रै गळै बाजती घंट्यां री रुणझुण में
अरे कान्हा
म्हारो तो दिन ओजूं ई चेतन हुवै
थारी ओळूं रै उणियारै
अर आंथतै सूरज री लाली में
ढळै थूं म्हारै काळजै
कांई तरवारां री खनक बिचाळै थारै कानां ई पड़ै
म्हारी पायली रमक-झमक
बोल रे कान्हा!
कै थूं साच्याणी क्रिस्ण हुयग्यो है।
</poem>
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