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प्रेम / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
प्रेम थारो
प्रेम म्हारो
कद होयो?
कमती या बेसी
कियां हुवैला प्रेम?
हळको कै गाढो
किण भांत दिखैला,
प्रेम फगत मन है
अधिकार या सत्ता नीं
कै
थै दे देसो
अर म्हैं ले लेसूं।

ओ ताज या ट्रॉफी भी नीं है
कै थे दौड़ में जीत सकोला
ताकड़ी रै निर्जीव बाटां में
किण भांत तोलसो
भार—वजन—मात्रा।

प्रेम रो रंग
कैमिकल या नेचुरल डाई री दांई
कद बरतीज्यो?
कै हळको या गैरो हुयग्यो
आंकड़ा, तर्क अर जिद्द
कद प्रेम पायो
प्रेम, प्रेम, प्रेम रो थांरो जाप
अंतस रै कूड़ै सबदां नैं
सहारो देवण री कोसिस है
कांई म्हैं समझू नीं?
पण समझ लो म्हारा मीत
प्रेम हक, तोल, जाप, मात्रा सूं नीं
सहजता सूं मिलैला
थे हो जाओ स्त्री निछळ,
प्रेम आपो-आप आ जासी
पण सरल नीं है, स्त्री होवणो...।
</poem>
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