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विरोधाभास / मोनिका गौड़

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|संग्रह=अंधारै री उधारी अर रीसाणो चांद / मोनिका गौड़
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<poem>
इज्जत
आबरू
ताज
शान
मान
मोटा-मोटा सबद
बदळ लेवै
आपरै धरम री धार
मिनख अर लुगाई रै
सांचै में ढळता
‘मर्द’ सारू
फगत स्टेटमेंट
बगत बायरै साथै धुंधळीज जावै
आपै बिगाड़्योड़ा अरथ
ऊभै छाती ताण
गंवायां पछै भी मान
लुगाई रै खांचै में
भरै बटका
आखी उमर बणै संताप
ढोवै पाप
अणकर्या गुनाहां रो
मन माथै डाम रा चटीड़ा
आतमा री बेड़्यां बण
डसता रैवै सारी उमर
इज्जत रा नाग
सदियां सूं
दोन्यूं टांग्यां बिचाळै सांभ्यां
आबरू रा प्रमाण-पत्र
सत्यापित करवावणा पड़ै
हर बार
अगन-सिनान सूं
मांगै पवित्रता रा प्रमाण
मौकापरस्त सपळोटिया
पैलां विधर्मी, दुस्मीं मनाता
जीत रो जसन उतार
आबरू री सलवार
अब करण ढूक्या
घर रा भी
लाज रो वौपार
स्त्री री दैहिक इज्जत बणगी
निजू बदळो
रिपिया कमावणै रो वौपार।
सूळी टंग्योड़ी लाज
खिण-खिण मरै लाजां
उघड़ै चौरायै माथै रोज
खोलतां ई अखबार
इज्जत-आबरू रैयगी
बण’र सनसनी रो वौपार
मान-शान खायग्यो
खबरां रो बजार।
</poem>
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