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09:39, 11 अप्रैल 2018 {{KKGlobal}}
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|रचनाकार=कुमार सौरभ
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<poem>
सुलगा कर के अपनी बीड़ी
फूँक दिये गाँव के गाँव
वही विधायक संसद की
सिगरेट चला है सुलगाने
वह जाति बहुल धन-बाहु-बली
हा ! घोर आपदा ! ईश्वर जाने !
</poem>