ख़ूब तेज़ बहती हवाएँ
मेरे लिए रास्ता बनाती हैं
मेरे किनारों पर किनारे खड़े पेड़
बादलों से बारिश उतारते हैं
प्रबल और प्रचण्ड गति से
तो कभी धीमे-धीमे बहती हूँ
हर समय मुझमें मुझ में झाँकता है
एक पुल
अपनी मेहराबों के साथ।
कंकड़-पत्थरों से भर देती हूँ।
बाढ़ बनकर चरागाहों और घरों मेंघुस जाता है बाढ़ बनकर मेरा पानी
दरवाज़ों को खटखटाता है
लोगों पर कहर ढाता है
चट्टानों और नमक के पर्वतों को काटती हुई
मैं उन घरों के पास से गुज़रती हूँ
जहाँ लटकी हुई झूल रही हैं झूलाकुर्सियाँ कुर्सियाँ और मेज़ें
मैं लोगों के मन के भीतर घुस जाती हूँ
'''9.'''
वह समय आएगा
जब मुझे समा जाना होगा
खारे सागर में
अपने साफ़ शफ़्फ़ाक पानी को
मिला देना होगा
गन्दे पानी में
रोक देनी होगी
अपनी गुनगुनाहट और गायन
अपने गुस्से भरे नाराज़ रुदन को
रोकना होगा
और अपने होठों को भींचकर
चुप्पी साध लेनी होगी
फिर हर रोज़ सुबह भोर होगी
सागर के पानी से मेरी आँखों को धोने के लिए
एक दिन आएगा
जब मैं विशाल सागर की गोद में
समा जाऊँगी
मैं अपने उपजाऊ खेतों से बिछुड़ जाऊँगी
मैं अपने हरे-भरे पेड़ों को छोड़ जाऊँगी
मेरी पड़ोसन हवा
मेरा साफ़-शफ़्फ़ाक आकाश
मेरी काली गहरी झीलें,
मेरा सूरज,
मेरा बादल
मैं कुछ भी देख नहीं पाऊँगी
सिर्फ़ एक विशाल नीला आकाश
छाया होगा मेरे सिर के ऊपर
और
फिर हर चीज़ सादे पानी में डूब जाएगी
बस, यह कविता या यह गीत ही बचेगा
और तेज़ी से बहती कई छोटी-छोटी नदियाँ बची रहेंगी
और वे एक साथ आकर
मुझे फिर से नया जगमगाता जल देंगी
मेरी टूटती साँसों को नया जीवन देंगी।
'''मूल स्पानी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''