भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जीवन बस अपना होता है / मानोशी

1,917 bytes added, 03:08, 14 अप्रैल 2018
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=मानोशी |अनुवादक= |संग्रह= }} <<<<<=== इस ल...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=मानोशी
|अनुवादक=
|संग्रह=
}}
<<<<<=== इस लाइन को डिलीट कर यहाँ उचित श्रेणियाँ डालें ===>>>>>
<poem>
जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥

जब-जब आशा के पौधोँ को
सींचा मैँने बडे जतन से
फूल खिलेँगे, मोती देँगे,
सपना बोया बहुत लगन से,
माली ने निष्ठुरता से यूँ
अधखिलती कलियों को काटा
रँगहीन था रक्त बहा जो
लेकिन क्या परवाह किसी को॥

नई-पुरानी छोटी-छोटी
बूँदों से कुछ बादल जोडे,
कहीं सितारा, कहीं चँद्रमा,
झिलमिल रातें, सपने ओढ़े ,
सोचा छू लूँ, पँख लगा कर,
ऐसी आँधी चली अचानक
सावन बरसा पर तरसा कर
फिर से प्यासा रखा नदी को॥

हम हैं जो बुनते अनदेखे
सब आशंकाओं के जाले,
हम ही होते शत्रु स्वयं के
अपने से ही चलते चालें,
तेज़ धार में समझबूझ कर
दे देते पतवार नाव की,
गहरे जल के हिचकोलों में
दोषी ठहराते माझी को॥

जीवन बस अपना होता है,
अपने ही सँग जीना सीखो॥
</poem>