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<poem>
आ मेरे ख़यालों में हाज़िरी लगा दीजै।
मन की पाठशाला में मेरा जी लगा दीजै।
फिर रही हैं आवारा ये इधर उधर सब पर,
आप इन निगाहों की नौकरी लगा दीजै।
 
दिल की कोठरी में जब आप घुस ही आये हैं,
द्वार बंद कर फौरन सिटकिनी लगा दीजै।
 
स्वाद भी जरूरी है अन्न हज़्म करने को,
देह की चपाती में प्रेम-घी लगा दीजै।
 
आँच प्यार की धीमी पड़ गई हो गर ‘सज्जन’,
फिर पुरानी यादों की धौंकनी लगा दीजै।
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