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विडम्बना / कल्पना सिंह-चिटनिस

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|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
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<poem>
ये फुटपाथों पर सोनेवाले
सड़कों की ख़ाक छानते
चिथड़ों में लिपटे भूखे बच्चे
कूड़े में अपना भविष्य ढूंढते

लड़ते हैं शीशे के उन टुकड़ों के लिए
जिसमे अपना चेहरा विकृत नज़र आने पर
आलिशान इमारतों में रहने वाले घबराकर
कूड़ेदानों में फ़ेंक देते हैं।

पर उन्हीं शीशे के टुकड़ों को पाकर
इन बच्चों का चेहरा
किस कदर खिल उठता है!
यह कैसी विडम्बना?


</poem>
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