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|संग्रह=चाँद का पैवन्द / कल्पना सिंह-चिटनिस
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<poem>
मेरी प्रवृति है
औषधियां सहेज कर रखना,
और रोगों का
निदान ढूंढना।

मेरे शुभचिंतक कहते हैं
मैं समय गंवाती हूं,
अमूल्य क्षणों को
व्यर्थ लुटाती हूँ।

हर रोज आकर
वे उलाहने देते हैं मुझे।
पर इधर कई पखवारे बीत गये,
वे नहीं आये तो सोंचा कि

मैं ही चलूं आज
उनकी कुशल पूछने,
तो मालूम हुआ -
वे बीमार थे।

</poem>
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