भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज
'{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस |अनुवादक= |संग...' के साथ नया पृष्ठ बनाया
{{KKGlobal}}
{{KKRachna
|रचनाकार=कल्पना सिंह-चिटनिस
|अनुवादक=
|संग्रह=तफ़्तीश जारी है / कल्पना सिंह-चिटनिस
}}
{{KKCatKavita}}
<poem>

आज वर्षों बाद
उसे भूख नहीं थी,
इसलिए नहीं कि
उसके अंदर का कोई
टुकड़ा मर गया था

बल्कि इसलिए कि
उसकी भूख
आज उतर गयी थी
एक पहाड़ी के पार,
किसी हरे भरे मैदान में

और छक कर पी ली थी ओस
पत्तियों पर ठहरी हुई - पुरनम,
ओस, जैसे उसकी आँखों में ठहरे
निष्पाप स्वप्न,

न जिनमें राख उदासी की,
न अविश्वासों का धुआं,
न सपनों का रक्त,

आकाश की ओर बाहें उठाये
जंगल की फुंगियों पर अधखिले स्वप्न,
बंद कलियों में कल की सुबह
और जंगल की जड़ों की मजबूती
जैसे उसके खुद की ही तो थी।

धरा का अंक,
जैसे मरियम की गोद,
और उसे महसूस हो रहा था प्रतिक्षण
अपने संपूर्ण तन में प्रवाहित जीवन...

आज सक्षम है वह बता सकने में कि
पहाड़ी के उस पार जंगल
मर क्यों जाते हैं,

कि ओस चाटते ही लोग
नीले क्यों पड़ने लगते हैं
उस पार,

पहाड़ी के उस पार।

</poem>
Mover, Reupload, Uploader
10,369
edits