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Kavita Kosh से
जब तीखी हवाएँ हेरेंगी ।
मुक्त हूँ- जड़ बंधनों से
मैं हूँ नर्म सरस होंठों की छुवन
दिव्य-प्रेम पथ की नर्तकी हूँ
थिरक-थिरक करती हूँ नर्तन।