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कई दिन हुए नदी तालाब सारा खेल नजर का पानी जम गया धोखा ही तो है पांव ठीक से रखना ... संभालकर क्यों नहीं छिटकते रहते इंद्रधनुष के रंग जोर की फिसलन है ज़रा अदब से चलो हर वक्त आकाश में? पता आवरण उतरते ही दीखने लगता है? थोड़े दिन पहले यहाँ किनारे हुआ करते थे नीला मटमैला स्याह-सफेद मिश्रित आकाश शहर से थोड़ी दूर तो थी ये जगह या कि इस नीले मटमैले जीवन को मगर यहाँ हर घड़ी क्षणमात्र के लिये ही सही सुरीली आवाज चटखती रहती थी तरंगित करने के संधान का सुफल है ये अद्भुत जीवन हुआ करता था बहते पानी में जमी आह! है जब से कब्र—सी लगती है मुझे बाधा बड़ी अभी जूते पहन कितने आराम से चल रहे हो तुम पुराने वक्त की आहट याद होता जो तब का मंज़र अन्वेषक की भांति पांव धरते संपूर्ण शरीर में ढूंढ़ ही रोएँ सिहर जाते लेती है सबसे कोमल चमड़ी तब के उलट सबकुछ बदलाचलते-बदला-सा है इस दम चलते पीठ पर जोर की थपकी लगाएबहुत ज़रूरी हो ...और फ़ना तो ही कोई घर से निकलता सरेराह पकड़ लेती है तेरी छाया रोशनी आकाश से छन नहीं पाती मेरे हाथ की छोटी ऊंगली सहसा घिरे बादल पैर से चिपट जाती लिपट गति को बांधे साथ-साथ चाहती है चलना शफ्फाक-सी उड़ती चलती भी है बरफ़ हवा  महत्त्वाकांक्षा के साथ रथ पर आरूढ़ होते हीजब आनंद त्यागना होता है वजन सम्बंधों का सो तूने त्यागे नीरस सफर की थकावट से नाचते गाते हो तुमलोग चूर ये बोझिल आंखें परिंदे ताकते झेंपती हैं वीराने तो शरीर भी शिथिल पड़ता जाता है डुबोकर छुपे बैठे हैं सीने को आस्तीन बनाएसफेद चादर बिछी है चारों तरफ मैदान पूरा खाली है टूटे ख्वाब और बेतरतीब नोकदार टुकड़े सीसे के क्या तुम्हें डर नहीं लगता? सहज होते ही बोध करा जातेउठते हो रातकि तेरा असहज रहना ही तेरा प्रारब्ध है तिसपर बिजली-बिरातसी कौंध जाती हैं नकाब ओढ़े हुए देखते होपटल पर तेरी नीमबाज़ आंखें बरफ का गिरना भय और पीड़ा की सीमा लांघतेसिकुड़ के बैठा है अबाबील उस सनोबर पर ये नासपीटे अब और क्या चाहते हैं मुझसे? हवा जब जोर इन समवेत आक्रमणों से बहती तो कुनमुनाता लड़ते चलना है सजाभीतर-सी ही-भीतर कई दफे ...रोजाना टुटन की कोई अहमियत नहीं पता है चार दिन बीत चुके हैंमुझे आंखें नम झंडे तैयार खड़े रखे हैं उसकी पेट खाली कोने में दिन निकलने को है अलविदा! चलो! चलते हैं फिर से नए मोर्चे पर
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