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Kavita Kosh से
उसके सुनहरे चमकदार बाल
बदरंग हो बन गए हैं चूल
वह जवान गोरी लड़की
अब बन चुकी है धूल
उसकी छाती पर पड़ा है
वह शान्ति से सो रही है
शान्ति, शान्ति, वह सुन नहीं सकती
संगीत या भजन
मिट्टी के उस ढेर के नीचे है मेरा भी जीवन
मैं भी हूँ वहाँ दफ़न।
'''मूल अँग्रेज़ी से अनुवाद : अनिल जनविजय'''