भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

Changes

Kavita Kosh से
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मुक्तक / कविता भट्ट

380 bytes added, 01:58, 16 मई 2018
शिखर पर पताका फहराने दो
अभी तो बस घर से चली हूँ मैं ॥
7
'''गहन हुआ अँधियार'''
प्रियतम मन के द्वार ।
धरो प्रेम का दीप
कर दो कुछ उपकार ।
8
'''नीरव मन के द्वार'''
अँसुवन की है धार।
छू प्रेम की वीणा
झंकृत कर दो तार ॥
<poem>
'''