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(6)

काव्य विविधा & अनुक्रमांक-3

तूं है जननी भारत माँ, तेरा जाणै ना कोऐ भा,
सबकी तूं कल्याणी री, शक्ति-जगदम्बा ।। टेक ।।

सरस्वती बणके तूं, सबके कंठ पै रहती है,
लोक-पावनी सै, पवित्र दुनिया कहती है,
बहती है सबनै बेरा, था शिवजी के सिर पै डेरा,
तेरा सै अमृत पाणी री, आई बणके नै गंगा ।।

इंद्राणी-लक्ष्मी बणी, ब्रह्मा की ब्रह्मवती,
तारा-अनसूईयां बणी, राम की सिया सती,
पार्वती कैलाशी की, तारण आली काशी की,
बणी झांसी की राणी री, होई देश पै कुर्बा ।।

नारद का मन मोहया, बणी थी विषयमोहनी री,
सुर्य की छाया बणी, चंदा की रोहणी री,
होणी भद्राकाली री, चण्डी शेरावली री,
चाली हंस-वाहिनी री, तूं कर मै भाला ठा ।।

कहै राजेराम तेरी मै, दुर्गे विनती करूं,
बात का गालिम सा भरज्या, इसे मै काफिऐ धरूं,
मांगेराम गुरूं मिलज्या, पायें लागू शीश झुका,
आ समरूं मात भवानी री, दिए दर्श दिखा ।।
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