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सांग:– चमन ऋषि– सुकन्या & अनुक्रमांक – (अनुक्रमांक– 2 )
वार्ता:- सज्जनों! जब पाण्डवों को वनवास मिला हुआ था उस समय पांचों पाण्डव और साथ में द्रौपदी रानी लोमश ऋषि के आश्रम में गये। उन्हें देखते ही ऋषिवर ने पूछा- हे राजन् द्रौपदी रानी के साथ वन में विचरण करते हो। क्या कारण है मुझे बताईये। धर्म पुत्र युधिष्ठिर ने कहा- ऋषिवर! हमारे जैसा इस संसार में दुखी कोई नहीं है। हमारा राज्य कौरवों ने धोखे से जीत लिया। इसलिए वनवासी हुए फिरते है। धर्म पुत्र की बात सुनकर ऋषिवर लोमश ने कहा- हे महारथी पाण्डव नंदन तुम तो कुछ भी दुखी नहीं हो। मै आपको प्राचीन इतिहास सुनाता हॅू। च्यवन ऋषि और सुकन्या का किस्सा सुन। बारह वर्ष की सुकन्या ने अपने बूढे़ पति च्यवन ऋषि को जो अंधा था उसने प्रतिव्रता धर्म से और सतीत्व से जवान बना लिया था। कवि ने फिर लोमश ऋषि की वाणी को कैसे दर्शाते है।
जवाब:- कवि का।
'''पाण्डू गये आश्रम के म्हां, ले गैल द्रौपदी राणी नै,''''''लोमश ऋषि बतावण लागे, एक प्राचीन कहाणी नै ।। टेक ।।'''
परमजोत परमेश्वर नै, शक्ति से आसमान रचे,