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Kavita Kosh से
|रचनाकार= निदा फ़ाज़ली
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हर तरफ़ हर जगह हो गये
अपना चेहरा न बदला गया<br>
आईने से ख़फ़ा हो गये
जाने वाले गये भी कहाँ <br>
चाँद सूरज घटा हो गये
बेवफ़ा तो न वो थे न हम <br>
यूँ हुआ बस जुदा हो गये
आदमी बनना आसाँ न था <br>शेख़ जी आप पारसा हो गये</poem>