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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
आव,
म्हारै कन्नै आव
आपां बातां करां
थू.....थू-
थारा कपड़ा!
धोळा धक्क है!
ठा है मन्नै सौ दीसै।
नैड़ो आ डर मत
म्हारै कपड़ां रो मैल
थारै कपड़ां रो मैल
थारै कपड़ां पर नईं लागै ला
थारी जूणरी जूण ही
मेल-पुरूफ है
सुण एकर तूं
हवा रै सरौदै खड़यो हो
फेर देा
म्हारी तावड़ै तपीज्योड़ी देही स्यूं
टपकतै पसीनै री बूंदां में
किती सगती है
थारै बोसकी रै चोळै पर
लाग्योड़ो अन्तर
म्हारै बैवतै पसीने री
धाकभरी भभक स्यूं
भाग जासी
इतरो सो भेद है
थारै अर म्हारै में
थारा टायर घसै तेल बळै
म्हारा पाका पग
मारग घसै
खुरदरी सड़क री रड़क काड़ नाखै
कर नाखै सरीसी
आ सड़क
थारै टायरां नै
समै स्यूं पैली फाड़ नाखै
पण म्हारी-नागी पगथळयां रो
उमर बदै
कांटां नै-कांकरा नै मसळ
मारग रो मरम गाळ नाखै।
आव नैड़ो आव
म्हारै स्यूं निजरां मिला
म्हारै चेरै कानी देख
पगां-उभाणों
म्हारो अधनागो सरीर
मत देख
कार स्यूं नीची उतर
मखमली मोचड़ी खोल
पगां नै खुरदरी धरती स्यूं
मेळ करण दे
डर मत फालां स्यूं मत डर
आव-आपां
म्हारै गाडै सारै
सड़क पर ऊभा हो‘र
एक फोटू खिंचावां,
म्हारी बरियान री बारादरी
म्हारै कच्छै रो हवामहल
आपणी फोटू में आसी
आपणी फोटू अमर हो जासी।
</poem>
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