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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
सोरा सुखी बसणिया बीर
थारी सीळी-सीळा संासां में
लागै जाणै घोळ्योड़ै होवै
केवड़ो अर गुलाब
बळती-बळती आं लूवां में
थारो मांयलो मोसम ठंडी टीप
चालती रैवै ठंडी ठंडी हील
जाणै पेट में
कूलर फिट करायोड़ो होवै।
अठीनै म्हारै पासै
पसीने में न्हावती देह
इण देही स्यूं
भट्टी नै लजावण हाळी
लाल लाल लपटां
आसै पासै धूंवो धुंवासो।
आं सांसां में गरम-गरम
भाप तो है
फुव्वारा कठै।
मांयलै पासै
खदबदीजती हांडी
कुण जाणै कद कुण
उघाड़दी ईं री ढ़कणी।
कर दो लूवां नै चोफाळियां
आव आपां आपणै मौसम री
अदला-बदली करां
मितर बणा।
म्हारै जिसै लोगां रो
मांयलो अर बारलो मौसम
एक सरीसो हीज होवै
गरमी में गरम
सरदी में ठंडो
थां लोगां रो मांयलो मोसम
बारलै मोसम स्यूं
मैळ कोनी राखै
थे इण वास्तै
गरमी में ठंडे अर
सरदी में गरम मौसम रा
मोताज रैवोला
छोड़ दोगलो पणो
चेरा मत ओढ़।
उतार थारा होकड़ा
चालणो है तो
होज्या म्हारै सागै।
</poem>
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