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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
दोलड़ी जीभ
जैरीली सांस
माथै में ग्यान रो गूमड़ो
पैरवां रै पोरां पर
ऊग्योड़ा भरूंटिया
आंख में अणत
काख में कुबाण
इसड़ै गुणाऊं
घड़ीज जड़ीज
मिनख री मांदगी रो
इलाज करणियां
आपां रै साथै रस्सै बस्सै।
कदै कदास आसै पासै
मौसम कूकड़ा बण
दिस रो बोध करावण खातर
कुरड़ी माथै खुरड़ा खोतरतां
मेलो कुचरतां
घणकरीक बार इणी भांत
जूण पूरी करतां करतां
टेम रो नेम भूल‘र बांग दे नाखै
सूंवीं सिंझ्या, आधी रात
पो फाटण री कुणसी बात।
</poem>
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