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ओ कुण / मोहम्मद सद्दीक

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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
ओ कुण ?
आदमी है,
आदमी!??
आदमी नईं मिनख है!
मिनख नईं आदमी है।
नईं.... ओ कवि है
ढूंढो अठै तो सोचै बठै
घणै लखणा रो लाडो है
सूणी है
ईं नै आगली पाछली
सगळी दीसै।
लारलै जनम स्यूं ले‘र
आगलै जनम ताईं रो
हिसाब किताब जाणै
ओ परख पारखी
लोगां नै
कपड़ा में नागा
नागां नै कपड़ां में देख ले
ओ पताळ फोड़ कूंवा रो
पताळ रो पतो लगा ले
ओ आकासा उड्डै
इणरै आगै सिकरा सरमावै
किरत्यां कीर्तन करण लाग जावै
सूरज स्यूं सोनो उगळावै
चान्द सूं चांदी बरसावै
ओ तावड़ै छिंयां रो पारख्ी
मै आंधी रो सैंधो
तूफानां नै तोलणियो
मीठो खारो बोलणियो
आगै चालै पैल्यां बोलै
पांगळी दुनियां रा पग
आंधी दुनियां री आंख
गूंगी दुनियां री बाणी
ओ सुंदर भावां रो उपजाणियो
धरती नै सुरग बणाणियो
हिम्मत री खैण
संगळा रो सैण
पण ..... घणकरीक बार
पतझड़ में झड़ै पत्तै ज्यूं
खाय हवा रा थपेड़ा।
कदै गळी कूंचळा में
तो कदै रोई रूंखडां में
रूळतो फिरै
दूब धरती तळै
जूण पूरी करै
इणरो मांस तो शाकाहारी ही खावै
इणरो कंकाळ
काळ में डोका चरतो फिरै।
</poem>
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