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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
थारी सगती रो तोड़
म्हारै सोचणै बिचारणै में
सदा स्यूं पांगरतो रयो है
थार असलियत नै नागो कर‘र
नुक्कड़ पर नाख‘र तन्नै
हांडी हत्तो करणो ही
म्हारो करम अर धरम।
थारा सोनै रा संपळोटिया
थारी चांदी री चमचेड़ां
अर थारै धापरै धक्का ऊं
म्हारी जूझती जूण सदा स्यूं
लड़ती आई है लड़ती रैसी।
याद है नीं...
म्है कमाया करता अर थै खाया करता
खाता रिया-खाता रिया
गुर्रारवता रिया
थारो गुर्रावणो तोरी चढ़ावणो
थारो अकारण रूस ज्यावणो
म्हारी मोत रो फरमान होया करतो
थै मारता रिया, म्हे मरता रिया
जलमता रिया, जूझता रिया
म्हारै जलमणै में
जुझणै री नई अदा ले‘र
जद-जद सामा आ‘र सामनो कर्यो
थे हारता गया, म्हे जीतता गया
थारा बिड़द बांचणियां भांड
थानै अन्नदाता बणाणिां
अर अन्नदाता बताणियां भाट
भाजता दीसै अठीनै बठीनै
घणकराक आज म्हारलै
पाहै में रमता दीसै
थारी सगती रा साधन
तीर तुक्का तोप तलवारां
बरछी ढालां अर कटारां
आज आपणै सारलै अजायब घरां में
थारै खूनी पुरातन रो
सांगोपांग सनातन सबूत है।
थारो इतिहास
जर जोरू जमीन रो इतिहास
अर म्हारलो इतिहास
समूची जूझती जूण रो मूंडै बोलतो दरपण
वन अर धरम रो होंकड़ा चढ़ाय‘र
कितराक दिन और जीणो चावो
आखर थानै मरणो पड़सी
लोगड़ा आपरै हक रै खातर लड़सी
ओ काळ रूप कीड़ी नगरो
थारै चिम्टी भर चून स्यूं
मुट्ठी भर धान स्यूं नई बिलमै
मिनखपणै रो पोरेदार
म्हारो ओ टिड्डी दळ
आज नईं तो काल
थारो खेत खासी, आपरो हक जतासी
मिनख-मिनख में भेट मिटावण
अजै क्रांति आसी।
</poem>
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