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<poem>
तिस री कूख तिंवाळा जलमै
भूख री कूख भतूळिया
जिण धरती-अै पुन्य पांगरै
मिनख मानखै धूळिया।

आस-उजास रो बाट तूकै बै
भूखै पेट भखारों में
बिन बाती बिन तेल दीवला
मूंडौ टेर अटारी में
इण विध और उजास करण तूं
आग लगा ले, पूळिया।

होटां-हाट हंसी बेचणियां
मन रो मोल करै कोनी
जूग-जूनी अणबाण आसरो,
पूरो तोल करै कोनी
मिनख रूप कंकाळ धरा पर
बणा फिर तकतुळिया।

आस चिड़कली इण मोसम में
गीतां स्यूं क्यूं रूठी है
अण चींतो कुचमाद धरा पर
मरगोजै ज्यूं फूटी है
लूंठी पोळ पुराणी पड़गी
तोड़ उतारो चूंळिया।

घणी उमस रा गोट घेरलो
सीळी सांसां सांवण रो
बीज धरा रै गरभ गळै जद
आस छूटज्या गावण रो
मन रा मिरग भुंवाळी खायां
निरा उठै भम्भूळिया।
</poem>
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