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|संग्रह=जूझती जूण / मोहम्मद सद्दीक
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<poem>
थानै कुण ऊंखळ में ऊरै
थानै कुण तोड़ै कुण चूरै
थानै कुण जीवतड़ा बूरै
थानै मोतड़ली क्यूं घूरै
म्हारा लाडला।

सिर पर सौ-सौ सिकरा घूमै
लोई दूसण जोखां लूमै
खामखा माणसियां न झूमै
मिनखाचारौ डरपै झूमै
म्हारा लाडला।

मोढा ऊंचा कर-कर हालै
आंख्यां मींचै ऊजड़ चालै
कीड़ा गयां रै सिर घालै
थानै कुण बरजै कुण पालै
म्हारा लाडला।

म्हारो मनड़ो ऊंडो सीजै
सगळा बाळै किणनै धीजै
मिनखाचारो पल-पल खीजै
म्हारी काया डरपै छीजै
म्हारा लाडला।

तूं तो सड़कां माथै सूवै
धन्नो गायां घर में दूवै
पल-पल माया कानी लूवै
बूंटी रळगी म्हारै कूवै
म्हारा लाडला

धीरज-धरती रो जद बूझै
इणरी काया आज अमूजै
सीयां मरतो डोकर धूजै
आंख्यां होवै तो कीं सूझै
म्हारा लाडला।
</poem>
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